Monday 28 April 2014

बांसुरी के स्वर से  कम्पित लम्हे
         सदियों तक जिए जाने की इच्छा  लिए हुए बीत गए
तुम रोप जाते हो
 एक पौधा उन आँखों में
 जिन्होंने कभी कोई रंग नहीं देखा ,
 और
 इस तरह शुरू होता है
मेरी दुनिया का सबसे बड़ा सच
 तुम्हारी दुनिया के सबसे बड़े एक झूठ से

Wednesday 23 April 2014

जब तुम नहीं थे तब  आरम्भ भी  तुम ही थे ,
जब हो तो मध्य  भी तुम ही हो ,
और
जब अंत होगा तब भी तुम ही रहोगे ,
तो फिर
कुछ भी बचा कहाँ सोचने के लिए ,
तुमने लिखी एक कहानी पानी पर
और
मैंने उसे आँखों में सहेज  लिया
अब कुछ पाना शेष नहीं

Tuesday 15 April 2014


उसकी निगाहों की तपन को अपने चेहरे पर धीरे-धीरे बर्फ होता हुआ महसूस करना ,
आँखों के किनारे पड़ने वाली छोटी छोटी लकीरों को धुंधलाते हुए देखना,
कमर गोल कर सिर्फ एक आंसू रोना
जिससे
दिए जा सकने वाले तमाम बोसे रह सके मीठे,
  ज़र्द होती हथेलियों पर उँगलियों से चुपचाप लिखना "मत जाओ",
जाती हुई अपनी हर एक उम्मीद के सिरहाने इस तरह बैठना ...

Thursday 3 April 2014

सदियों से बीते हुए समय को उलट कर
बेआवाज़ रोने के बीच
काश के साथ
याद में दाखिल है एक चेहरा
लेकिन
उसने चुना है अपने लिए
सिर्फ
मुस्कुराहटें देखना

हा ! इस प्रेम की नियति यही है
कोई रुक कर मुड़ता भी नहीं
किसी आवाज़ के इंतज़ार में,
उकताए पाँव खुरच देते हैं
लम्बे रास्तों के निशान,
जा चुकने के बाद भी ठहर जाता है बहुत कुछ
होठों के बंद में ,
ज़मीन को ज़मीन ही निगल जाती है
और
बरस हार जाते हैं बिना उम्र की दूरियों से ,
इन अंतहीन रस्तों से बुना,
अधिक सा तुम्हारा
और
कुछ कम सा मेरा
शहर ,
बाट जोहता खो गया