Friday 15 August 2014

सारे बंधन जो मैंने जाने अनजाने जोड़े

या

जो जोड़ दिए गए मुझसे ,

अब उनसे मुक्ति चाहती हूँ ,

न कहीं जाने की इच्छा है
...

न कहीं खुद को पहुँचाने की उतावली,

न तुमसे जुड़ने के अंतहीन इंतज़ार का इंतज़ार है,

न ही कोई रस्ता तलाशना है की पहुँच सको तुम मुझ तक ,

मुक्त होना है

जलते कोयलों पर चलने की प्यास से,

तलवे की आंच माथे तक पहुंचा ,

सारी शिकनों को फूंक डालना है,

मुझे भी आज़ाद होना है .
 
 
 
 
 
आप सभी को आज़ादी की बधाई!!!!

Tuesday 12 August 2014

दरवाज़े से टिक कर खड़ी वो महबूब का रस्ता देखती रहती थी, इंतज़ार की सारी सतरें चुन लेने के बाद भी जब कुछ न बुना जाता तो वो गहरी सांस ले पलट जाती लेकिन उसके कान बाहर रस्ते पर ही अटक जाते, हवा भी गुजरती तो वह उम्मीद की एडियों के बल घूम जाती और इस लायक भी न रह पाती की अपने आंसुओं की गर्मी महसूस कर सके . गेट के बाहर सड़क किनारे लगे पेड़ आपस में भले ही कभी न बोलतें हों लेकिन उसकी इस हालत पर सारे पेड़ों की सारी पत्तियाँ खिल-खिल हँस पड़ती और उनके हँसते ही बारिश की जमा बूंदों को नीचे धरती पर कूदने के हज़ारों-हज़ार बहाने मिल जाते. अपनी एक शिकायत जो उसने मुट्ठी में दबा रक्खी थी सोचती की पत्तों पर लिख कर उड़ा दे या अंतस में गहरे कंही दबा ले.
                                                                                      अपना  चश्मा उतार मैंने  अपनी कनपटियाँ दबाते हुए डायरी बंद कर दी . मैं  हमेशा ही कहानी लिखना चाहती हूँ और बैठती भी हूँ  कहानी ही लिखने लेकिन हर बार अपना मन डायरी पे लिख उठ जाती हूँ  . पता नहीं इस बार भी मुझसे  ये कहानी लिखी जा पाएगी या नहीं.


( शायद कभी दरवाज़े पे  या किसी गली किसी सड़क पर इस कहानी से  मुलाकात हो ही जाए तब तक सिर्फ इंतज़ार.)

Sunday 3 August 2014



कई दिनों बाद मिले थे वो !

उन दोनों ने ही अपने बिज़ी शेड्यूल मे से आज का फ्री वक़्त एक – दूसरे के नाम किया था ।

अब दोनों साथ-साथ थे , बे-मक़सद से सड़कों पर घूमते हुये ।

एक दूसरे का हाल चाल पूछने के बाद मौन पसरा था ।

लड़की के बाल शाम की ठंडी हवा से उड़ – उड़ कर उसे थोड़ा तंग कर रहे थे ।

लड़का अपनी सिगरेट को ख़त्म होता हुआ देख रहा था ।

“ शहर में ट्रेफ़िक कितना बढ़ गया है ना ?बे-हिसाब गाडियाँ हैं ! “




लड़की का जवाब वो सुन नहीं पाया ।


कुछ देर की चुप्पी को समेट लड़की ने कहा “ ठंड बढ़ गयी है ! “

लड़के का जवाब लड़की के कानों तक नहीं पहुँचा।

जब दो बेहद परिचित लोग , शहर के ट्रेफ़िक और मौसम की बात करें तो उन्हे कुछ सोचना ज़रूर ही चाहिए !

Saturday 2 August 2014

चलो एक बार फिर से
आरम्भ का आरम्भ करते हैं,
तुम उसी तरह हाथों में चश्मा हिलाते हुए मुझसे बात करना
और
मैं बिलकुल उसी जगह ठुड्डी पे हाथ रक्खे सुनुगी,
चादर का कोना सीधा करते हुए देना तुम कुछ हिदायतें ,
सर हिला कर मौन सहमती दूँगी मैं,
तुम देखना एक बार वैसे ही नज़र उठा कर मेरी हिलती गर्दन को,
और
मैं एक बारगी फिर अटक जाउंगी तुम्हारी गहरी आँखों में, ...
एक बार फिर से साझा कर लेते हैं
शादी और निभाए जा सकने वाले संबंधों की चिंता को,
इस दोपहरी तुम्हे आराम कुर्सी पर सोता देख कर ,
गढ़ी हुई सारी परिभाषाओं को ताक पर रख कर
एक बार फिर से ,
सिर्फ और सिर्फ
तुम्हारी बेटी होना चाहती हूँ.