Friday, 8 May 2020

ठीक हो? पूछने पर ना रूकती हुई खाँसी के बीच बमुश्किल कहते हो "ठीक हूँ, और एक चुप्पी पसर जाती है, कोई और सवाल नहीं सूझता पूछने को. किसको भेजूं तुम्हारे घर कि देख आये ताला लगा हुआ है या दरवाज़ा खुला है हमेशा की तरह. 

कुछ उम्मीदें साँस धीमे धीमे लेने लगती हैं. 


जब मरे चूहे की पूँछ पकड़ एक हाथ से  हवा में लहराया था तुमने और दूसरे हाथ से उसकी फोटो खींच रहे थे तब मेरा सफ़ेद पड़ा चेहरा देख ज़ोर से हँसे थे तुम, बहुत समय से तुम वैसे नहीं हँसे , अब तुम वैसे क्यूँ नहीं हँसते?

बेवज़ह की हँसी दुनिया की सबसे खूबसूरत शय होती है. 


दाढ़ी  भी तो बढ़ गई होगी न तुम्हारी, आओ पहले की तरह शेव कर दूँ, हमेशा की तरह  हँस कर तुम हर बार की तरह कहना देखा है कोई  नाई ऐसा जो गोदी में बैठ कर शेव करता हो, लेकिन भूल मत जाना  उस  बार तुम्हारी हँसी पे रेज़र ज़रा ज़ोर से चल कर ठुड्डी के पास एक कट लगा गया था. अरे! ध्यान से, दर्द होता है, दर्द ही तो दे रही हूँ. तुम चुप हो गए थे जाने मेरे शब्दों से या मेरी आवाज़ की ठंडक से. 

कभी सेवईंयों सी थी चुप्पियाँ अब बेपहर की दुपहर सी हों गईं हैं बीतती ही नहीं. 

एक दफा रोमैंटिक मूवी देखते समय एक दोस्त ज़ार ज़ार रोई थी, उसकी रुलाई ने तब हैरानी में डाला था, देर से समझ आया की क्यूँ रोई थी. चलो हम दोनों के बीच एक बात तो कॉमन है कि हम दोनों ही रोमैंटिक मूवी नहीं देखते. 

कुछ बातें  मन को हक्बक्का कर छोड़ के चल देती हैं. 

जिस दिन कहा की एस एम एस करना अच्छा नहीं लगता उस दिन से तुम्हारे मैसेज ना के बराबर आते हैं, एक तरफ़ा बातचीत तो कभी मुद्दा नहीं रही.

उधड़े हुए रंग खिड़कियों पर अच्छे नहीं लगते उन्हें बदल दो. 

सड़क किनारे रुक कर उसे देखती हूँ , नरम नरम गुलाबी से बुढ़िया के बाल कौशल से एक डंडी पे लपेटते हुए, मुंह में स्वाद घुल  जाता है, तुम्हे मीठा कतई पसंद नहीं ना, हलवाई से काले जाम खरीदती हूँ. 

पसंद नापसंद के भी अपने अलग से रिश्ते बन जाते हैं. 

हॉस्पिटल में  नर्स ने तुम्हे देख कहा था कितना यंग है और मेरी तरफ देख के कहा था बच जायेगा, हिंदी ख़राब थी उसकी. आई सी यू  के बाहर दीवार से टिक के खड़ी थी, तुम्हारे दोस्त ने कहा था भाई बेहोशी में आपको पुकार रहे हैं और कहा था धीमे से चिंता ना करें ठीक हो जायेंगे, सिर्फ सर हिला पाई थी. 
एक छोटा सा लम्हा छीना था कि बस  चूम सकूँ तुम्हारे होंठ. 
आज भी उस हॉस्पिटल के चक्कर लगा आती हूँ कभी कभी, तमाम चेहरे दिखते हैं लेकिन किसी में भी तुम्हारा चेहरा नहीं तलाशती. 

कुछ चेहरे कहीं तलाशे नहीं जा सकते वो सिर्फ होते हैं. 

तुम्हारी उस बड़ी सी खिड़की के पास वाली रिवॉल्विंग चेयर  पे सफ़ेद और पीले कुशन को देख मुंह से निकला था पीला तो तुम्हारा फेवरेट कलर नहीं है, अलमारी में किसी  किताब को तलाशते मुड़े बिना तुमने कहा था "तुम्हारा है", सच बताऊँ उस दिन बेइन्तेहाँ प्यार आया था तुम पे. 
तुम वैसे ही प्यार के इंतज़ार में होंगे ना?

कुछ इंतज़ार उम्र भर के हो जाते हैं, है ना !

जोधपुर चली जाओ 
ना 
क्यूँ? मैं वहां तुम्हारे सारे इंतज़ाम कर सकता हूँ, जाना पहचाना शहर है. 
तभी तो 
मतलब?
तुम थे वहां तुम हो वहाँ 
तो मैं चला जाता हूँ 
पिछले कुछ समय से सर झुका कर बैठने की आदत हो गई थी मेरी, ये बात कहाँ जानते थे तुम. मैंने भी तो कहाँ बचा कर रखा था कोई जरिया ये जान ने का कि अब किस शहर में हो तुम। 

कुछ नाते धीमे से करवट ले लेते हैं.