उस रात उनींदे होंठों से
रखा था
एक तिल गले पर,
उसी रात सी रात में
आधा- अधूरा सा मुस्कुरा,
एक नज़्म ने
बर्फ सी आँखों पर
अपनी प्यास रख
पलकों से पलकों को उलझा लिया था,
उसी रात तो
एक प्यास अलाव से उठ कर
हलक में तैर गई थी,
उस रात की वो रात
अब भी
वहीँ रुकी सी है,
आते कदमो की आहट
के इंतज़ार में ।।।
रखा था
एक तिल गले पर,
उसी रात सी रात में
आधा- अधूरा सा मुस्कुरा,
एक नज़्म ने
बर्फ सी आँखों पर
अपनी प्यास रख
पलकों से पलकों को उलझा लिया था,
उसी रात तो
एक प्यास अलाव से उठ कर
हलक में तैर गई थी,
उस रात की वो रात
अब भी
वहीँ रुकी सी है,
आते कदमो की आहट
के इंतज़ार में ।।।