dosheezaa
Tuesday, 10 February 2015
तुम मेरे लिए ताबीज़ जैसे हो
और
मैं तुम्हारे लिए किसी राह की अजनबी राहगीर
तुम्हे होना ही था
और मैं ठहर कर क्या करती
हज़ार साल भी रहती तो भी
तुम्हारी राह मुझसे से ना मिल पाती
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