Saturday, 17 February 2018

" बुरी आदतों की वजह भी इतनी आशिकाना हो सकती है"

किसी प्रेम कहानी को लोगों के दिल में उतारने के लिए उस से जुड़ना , उसे जीना पड़ता है, और अगर उस प्रेम कहानी के  किरदारों से लोगों की वाक़फ़ियत है तो ज़िम्मेदारी और ज्यादा बढ़ जाती है।  सैफ हैदर हसन ने  कोशिश की अमृता साहिर की प्रेम कहानी को छूने की,  दिल्ली के प्यारे लाल भवन में "एक - मुलाक़ात" के ज़रिये।

  एक मुलाक़ात  , इस प्ले में सब कुछ ठीक था ,बैकग्राउंड म्यूजिक नहीं था जिसकी वजह से डायलाग आराम से सुने जा सकते थे, मंच पर पीछे एक स्क्रीन पर इस प्ले से जुड़े तमाम लोगों के नाम दिखे, और अमृता साहिर के रूप में दीप्ति नवल और शेखर सुमन की फोटोज़। ये एक बेहद अच्छा प्रयोग था।  एक सीन में जब दीप्ति और सुमन की पीठ दर्शकों की तरफ है तो स्क्रीन पर उनके चेहरे दिखते  हैं, ये प्रयोग लाजवाब लगा।
                            प्ले शुरू होने से  पहले शेखर सुमन ने एक नज़्म पढ़ी, जिसमे उर्दू लफ़्ज़ों के सही उच्चारण पर इतना ज्यादा ज़ोर दिया गया था की लगा ही नहीं की नज़्म सुन रहे  हैं,शायद यही वजह है की नज़्म कौन सी थी ये याद नहीं लेकिन शेखर सुमन का "ख़" पर ज़ोर देना याद है। हो सकता है कि शेखर  साहिर की तरह दिखते  हों  लेकिन उन्होंने स्टेज पर ज़रा सी भी कोशिश नहीं की साहिर को जीने की , ना ही अमृता के बगल में बैठे हुए, ना उनसे बातें करते हुए , शेखर से साहिर  की नज़्में सुनते हुए नज़्म पर कम और उर्दू शब्दों की ओर ध्यान ज्यादा गया।  उर्दू शब्दों के उच्चारण पर शेखर सुमन ने  इतना ज्यादा ज़ोर दिया की नज़्म कहीं खो सी गई और ये बात खल  गई।  डयरेक्टर ने उन नज़्मों को चुना जो पहले ही फ़िल्मी गीतों के रूप में मशहूर हैं , शायद दर्शकों को साहिर के कलाम से जोड़ना वजह रही हो।  आखिर में शेखर सुमन ने बताया की ये उनकी 74 वी मौत थी यानी की इस प्ले का ये 74 वाँ शो था, कमाल है और अब तक  किसी ने शेखर सुमन को ये नहीं बताया की उन्हें वीर रस में साहिर की नज़्में नहीं पढ़नी चाहिए। 


  ये काल्पनिक मुलाक़ात होती हैं छत पर जहाँ अमृता अकेली बैठी हैं और अचानक साहिर आ जाते हैं, जहाँ दोनों  अपने बीते दिनों के बारे में , एक दूसरे के ख्याल , अहसास के बारे में बातें करते हैं।  दीप्ति अमृता प्रीतम की कुछ पँजाबी कविताएं पढ़ती हैं।  अमृता का छत पर बैठना दरवाज़ा अंदर से बंद कर के और नीचे से इमरोज़ का अमरता -अमरता पुकारना बेहद खूबसूरत था।  वो कलाकार सिर्फ अपनी आवाज़ से अमृता के प्रति इमरोज़ के लगाव को दिखा गया जो शेखर सुमन एक घँटे की अपनी परफॉर्मेंस में नहीं दिखा पाए। 


दीप्ति अमृता के रूप में पूरी तरह घुली नहीं, लगा जैसे की वो अमृता प्रीतम के सामने ठिठकी सी खड़ी हों आगे बढ़ के उन्हें गले नहीं लगा पा रही हों। रसीदी टिकट के कुछ वाकयों को दीप्ति ने सुनाया, हाँ सुनाया ही सही है क्यूंकि लगा ही नहीं की अमृता वो सब याद कर रही हैं। 

क्या ये ज़रूरी है की उदास नज़्में बेहद उदास , रोती  हुई आवाज़ में सुनाई जाएँ? क्यूँ  खाली आवाज़ में उदास नज़्में नहीं सुनाई जा सकती? 


 दीप्ति ने बिना म्यूजिक के कुछ लाइन्स गाई जो की बेहद खूबसूरत थी, उनकी आवाज़ दिल में उतर गई, बाद में लगा काश इसे रिकॉर्ड किया होता।                                                                                                      
  थोड़ा सा फ़िल्मी टच भी था, बम्बई से ट्रंक कॉल है सुनते ही लगा की साहिर की मौत की खबर है जिसे अमृता तीसरी बार की ट्रंक कॉल में सुन पाई। 


                                                                                                                                              
खैर ये प्ले दीप्ति नवल और  शेखर सुमन की कहानी नहीं था, ये उस प्रेम कहानी पर  था जो एक रसीदी टिकट के छोटे से हिस्से पर लिख दी गई और जो आज शाम 7 :40 पर  शुरू हुई और 9  कब बज गए पता भी नहीं चला। 





"तुमने इमरोज़ को मेरी यहाँ मौजूदगी के बारे में क्यों नही बताया"

स्कूटर पर इमरोज़ के पीछे बैठ कर जब मैं उनकी पीठ पर उँगलियों से तुम्हारा नाम लिख सकती हूँ तो मेरी खामोशी में इमरोज़ तुम्हारी मौजूदगी सुन ही सकते हैं।

2 comments:

  1. सुंदर सृजन
    कमाल की प्रस्तुति
    बधाई

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