घुटनों पर कोहनी टिकाये ,
उंगलियाँ जोड़े ,बैठे हुए
रेत पर खींचे थे कुछ खाने ,
उंगलियाँ जोड़े ,बैठे हुए
रेत पर खींचे थे कुछ खाने ,
,
सहस्त्रों सभ्यताओं से भागे शब्दों से
फूंक उड़ाई थी ,
एक टेढ़ी सी हंसी ,
चुभते से लम्हे
गुजरे थे ,
हलक में अटकी याद के
रंग को गहरा करते हुए ,
चुभते से लम्हे
गुजरे थे ,
हलक में अटकी याद के
रंग को गहरा करते हुए ,
बेबसी से नाराजगी के बीच ,
कुछ अधूरी ख्वाहिशों ने ,
पूरी होने की ख्वाहिश
बिसराई थी ,
बचा रह गया था ,
बेहिसाब फैले , पसरे
सीले से दिनों की ,
काली सी स्लेट पर
एक लफ्ज़
काश .....
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