अकथ कविता -कहानी की जमीन पर
उग आई थी ,
जो
एक सीधी और सच्ची बात ,
बहुत छोटे से पल के भी सौवें हिस्से में
तुम्हारी आँखों से गुजरते हुए
लिपट कर रह गई जो मेरी उँगलियों से
कुछ मुड़ सी गई है ,
आधी सी चुप्पी में सुनने से रीती रह गई
वो सारी लम्बी दोपहरें
ठहर गई हैं किन्ही दो टुकड़ा आँखों पे ,
किसी बेपहर के दिन
शब्दों की कलाई पर
नीली स्याही से गुदे
एक अक्षर के इतिहास को
सीधा कर दो
उग आई थी ,
जो
एक सीधी और सच्ची बात ,
बहुत छोटे से पल के भी सौवें हिस्से में
तुम्हारी आँखों से गुजरते हुए
लिपट कर रह गई जो मेरी उँगलियों से
कुछ मुड़ सी गई है ,
आधी सी चुप्पी में सुनने से रीती रह गई
वो सारी लम्बी दोपहरें
ठहर गई हैं किन्ही दो टुकड़ा आँखों पे ,
किसी बेपहर के दिन
शब्दों की कलाई पर
नीली स्याही से गुदे
एक अक्षर के इतिहास को
सीधा कर दो
ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.
ReplyDeleteसंजय भास्कर
शब्दों की मुस्कुराहट
http://sanjaybhaskar.blogspot.in