dosheezaa
Saturday, 8 November 2014
जब तुम्हे दोराहे पर पा ठिठक जाऊँ,
जाता देखूँ जब तुम्हे किसी राह
तब भी,
तुम्हारी पीठ पर रक्खी आँखों में
सुकून भर पाऊँ,
जब पलकें हों खामोश
और होंठों पर ज़िंदा न हो कोई कम्पन,
तो समझना
तुम्हारी आत्मा की धड़कन में
साबुत बची हूँ मैं।
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