Sunday, 18 January 2015

नहीं है प्रेम तुमसे
मैं नहीं हूँ तुम्हारे प्रेम में डूबी हुई
हाँ
लेकिन
जब देखती हूँ तुम्हे
तो नज़र में होता है उसका चेहरा
उसकी बातें , उसकी मुस्कान
तुम्हारी किसी बात पर जब खिलखिल कर उठती हूँ
तब वह होती है एक नैराश्य में डूबी खिलखिलाहट
कि
नहीं वो पास की भर सकु रंगों को मुठियों में
नहीं वो पास की डुबो सकूँ सारी उम्र को उसके रंगों में
सच ,नहीं है मुझे प्रेम तुमसे
किसी के कहने से भी नहीं है
बस
तुम्हारे नाम का बीच वाला अक्षर हु ब हु मिलता है उसके नाम के बीच वाले ही अक्षर से
शायद इसलिए थोडा सा लगाव हो उठा है तुमसे
लेकिन प्रेम तो सिर्फ उससे ही है ।

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