तुमने कहा था..आवाज़ दोगी, तारीख़ भी मुकर्रर की थी,
तुमने कहा था
अपनी किसी चाहना की उलझन में
दो उँगलियों में से चुनो ज़रा किसी एक को
तुमने कहा था
जब चुप से कमरे में तैरे आवाज़ कोई
तो
आँखें मूँद,
एक जुम्बिश भर मुस्कुरा दूँ
तुमने कहा था
जब गिनना हों अकेली बैठी सदियों को
तो
मुट्ठी की पीठ पर नहीं
गिना करूँ खतों को
तुमने कहा था....
अब कभी कुछ क्यूँ नहीं कहती तुम।
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