मैंने सोचा दुःख
और
तुम बन गए
हर वो ज़ख्म
जो
उग सकता था मेरे बदन पर
मैंने कहा सुख
और
तुम ढल गए खुश्बुओं और स्वरों में
सातों जल और एक कम्पन में
और
तुम बन गए
हर वो ज़ख्म
जो
उग सकता था मेरे बदन पर
मैंने कहा सुख
और
तुम ढल गए खुश्बुओं और स्वरों में
सातों जल और एक कम्पन में
तुम बंधे हो मुझमे
मैं ढली हूँ तुममे
मैं ढली हूँ तुममे
तुम बंधे हो मुझमे
ReplyDeleteमैं ढली हूँ तुममे
sundarr sach