Saturday, 2 August 2014

चलो एक बार फिर से
आरम्भ का आरम्भ करते हैं,
तुम उसी तरह हाथों में चश्मा हिलाते हुए मुझसे बात करना
और
मैं बिलकुल उसी जगह ठुड्डी पे हाथ रक्खे सुनुगी,
चादर का कोना सीधा करते हुए देना तुम कुछ हिदायतें ,
सर हिला कर मौन सहमती दूँगी मैं,
तुम देखना एक बार वैसे ही नज़र उठा कर मेरी हिलती गर्दन को,
और
मैं एक बारगी फिर अटक जाउंगी तुम्हारी गहरी आँखों में, ...
एक बार फिर से साझा कर लेते हैं
शादी और निभाए जा सकने वाले संबंधों की चिंता को,
इस दोपहरी तुम्हे आराम कुर्सी पर सोता देख कर ,
गढ़ी हुई सारी परिभाषाओं को ताक पर रख कर
एक बार फिर से ,
सिर्फ और सिर्फ
तुम्हारी बेटी होना चाहती हूँ.

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