Friday, 15 August 2014

सारे बंधन जो मैंने जाने अनजाने जोड़े

या

जो जोड़ दिए गए मुझसे ,

अब उनसे मुक्ति चाहती हूँ ,

न कहीं जाने की इच्छा है
...

न कहीं खुद को पहुँचाने की उतावली,

न तुमसे जुड़ने के अंतहीन इंतज़ार का इंतज़ार है,

न ही कोई रस्ता तलाशना है की पहुँच सको तुम मुझ तक ,

मुक्त होना है

जलते कोयलों पर चलने की प्यास से,

तलवे की आंच माथे तक पहुंचा ,

सारी शिकनों को फूंक डालना है,

मुझे भी आज़ाद होना है .
 
 
 
 
 
आप सभी को आज़ादी की बधाई!!!!

4 comments:

  1. अत्यंत संवेदनशील लेखन !!!! कैसे सम्हालती है? आत्मा को देह के बंधन में ! :-)

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  2. बहुत सुन्दर और भावुक रचना
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    सादर ----

    आग्रह है मेरे ब्लॉग में सम्मलित हों
    हम बेमतलब क्यों डर रहें हैं ----

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