सारे बंधन जो मैंने जाने अनजाने जोड़े
या
जो जोड़ दिए गए मुझसे ,
अब उनसे मुक्ति चाहती हूँ ,
न कहीं जाने की इच्छा है
...
या
जो जोड़ दिए गए मुझसे ,
अब उनसे मुक्ति चाहती हूँ ,
न कहीं जाने की इच्छा है
...
न कहीं खुद को पहुँचाने की उतावली,
न तुमसे जुड़ने के अंतहीन इंतज़ार का इंतज़ार है,
न ही कोई रस्ता तलाशना है की पहुँच सको तुम मुझ तक ,
मुक्त होना है
जलते कोयलों पर चलने की प्यास से,
तलवे की आंच माथे तक पहुंचा ,
सारी शिकनों को फूंक डालना है,
मुझे भी आज़ाद होना है .
आप सभी को आज़ादी की बधाई!!!!
wah... poetry at its best..
ReplyDeleteStepUp
अत्यंत संवेदनशील लेखन !!!! कैसे सम्हालती है? आत्मा को देह के बंधन में ! :-)
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर और भावुक रचना
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर ----
आग्रह है मेरे ब्लॉग में सम्मलित हों
हम बेमतलब क्यों डर रहें हैं ----
nice .....
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