dosheezaa
Sunday, 2 February 2014
दिन रात के फेर से परे उपजे मन में ,
अपने लिए हाँ सुन कर
मन में ही पनपे भी ,
तुम्हारी पीठ से उतरती धूप में ,
उम्रदराज़ हो गए मन ही में ,
होंठों पर जमे एक शब्द को सुनने की
चाह बिना
जाती सर्दियों में
मेरे सारे सपने
मन ही मन
मुझसे
नाराज़ भी हो गए
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