उत्कंठा है
तुम्हारे साथ
खेलने की
हर किसी से जीत कर
तुमसे हारने की
दाँव पे रखूँगी
अपने
पाप -पुण्य
धर्म -अधर्म
इक्षा -अनिक्षा
"मैं"
और पा जाऊँगी
चिर -प्रतीक्षित हार में
चिर -लक्षित जीत
"तुम"
तुम्हारे साथ
खेलने की
हर किसी से जीत कर
तुमसे हारने की
दाँव पे रखूँगी
अपने
पाप -पुण्य
धर्म -अधर्म
इक्षा -अनिक्षा
"मैं"
और पा जाऊँगी
चिर -प्रतीक्षित हार में
चिर -लक्षित जीत
"तुम"
Sundar...
ReplyDeleteपारिजात सा...कोमल...
ReplyDeleteजब भी तुम उत्कंठित होती हो
वो आह्लादित होता हूँ
तुम हारकर अनमोल हो जाती हो
वो जीतकर तुम्हारा हो जाता हूँ