उतरती है मेरे तुम्हारे बीच
एक पगडण्डी अक्सर
सीधी सपाट
निर्जला
कंठ में काँटे सहेजे
पसरती हैं चुप्पियाँ
इस सिरे से उस सिरे तक
पगडण्डीयाँ हमेशा
रस्ता नहीं
हुआ करती !!!!
एक पगडण्डी अक्सर
सीधी सपाट
निर्जला
कंठ में काँटे सहेजे
पसरती हैं चुप्पियाँ
इस सिरे से उस सिरे तक
पगडण्डीयाँ हमेशा
रस्ता नहीं
हुआ करती !!!!
एक जोड़ी पैरों ने कोशिश करके समय के चहरे पे एक लकीर खीच दी। . कोई साथ चला आया तो पगडण्डी नहीं तो सुबह की ओस के जमने की जगह कुछ देर के लिए के लिए कम हो गयी ,
ReplyDeleteसमय के चेहरे पे ये लकीर अभी अपने थम जाने का इन्तेजार करते हुए चितिज़ को निहारती है।
बस अभी, थोड़ी देर और अभी।
koi itni achchi tarah bhi samajh sakta hai , sukriya aapka
Deletesamajh meri nahi hai, god gifted hai, so shukriya unka.
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