हिलती-डुलती नींद से अचानक ही आँख खुल गई शायद ट्रेन के एक झटके से रुकने
की वजह से ,
सूरज निकला नहीं था और हवा में ठंडक भी थी , ट्रेन की खिड़की से रौशनी की
बाट जोहता बाहर का
नज़ारा खूबसूरत था ,उच्छवास ने भी जानना चाहा की ट्रेन
किस जगह रुकी है , क्षितिज में हलकी सी रोशनी ढूँढने की कोशिश की लेकिन
अँधेरा था , हल्का सा अँधेरा , इतना हल्का की लगा सुबह बस रास्ते में ही
कहीं है , आँख खुलते ही उठना जरुरी लगता है लेकिन होता तो नहीं जरुरी,
उठते ही तो स्मृतियाँ परजौट माँगने लगती हैं , ऊसर मन चुका नहीं पाता
ट्रेन कहीं बीच में रुकी थी , किन्ही दो शहरों के बीच , किसी एक शहर के
ज्यादा करीब , पीछे छूट चुके
शहर की याद आते ही मन कोल्ड कॉफ़ी की महक से भर उठा और बेसाख्ता होठों से
फिसल पड़ा एक शब्द - कोल्ड कॉफ़ी , मन भी ऐसे ही समय चौपड़ बिछा बैठ जाता
है और कर लेता है सारी कौडियाँ अपनी तरफ , नाम की
याद की जगह किसी एक पल को सामने ला खड़ा करता है , और आ जाती है बहुत सारे
लम्हों के साथ मुस्कराहट और नमी एक साथ , सहयात्री ने कहा इतनी सुबह और
ठण्ड में कोल्ड कॉफ़ी ? क्या सहेजा हुआ नाम भी बेध्यानी में ऐसे ही निकलता
है , मुस्कुराते हुए एक चाय वाला ढूंढ निकाला , उसने कांच के गिलास में
चाय डाल मेरी तरफ बढाई , इनकार में सर हिलाते हुए मैंने कुल्हड़ में चाय
मांगी , हैरानी से मेरी तरफ देखते हुए उसने कंधे उचकाये और कुल्हड़ में
चाय दे दी , कन्धों पे हमेशा ही पुरानापन पसरा रहता है , हथेलियों
से कुल्हड़ थाम कोल्ड कॉफ़ी की गर्माहट के साथ मैंने अदरक वाली चाय की एक
घूँट भरी और पीछे रह गए शहर को पीते हुए आगे आने वाले अपने शहर की भीड़
में मन को खो दिया
की वजह से ,
सूरज निकला नहीं था और हवा में ठंडक भी थी , ट्रेन की खिड़की से रौशनी की
बाट जोहता बाहर का
नज़ारा खूबसूरत था ,उच्छवास ने भी जानना चाहा की ट्रेन
किस जगह रुकी है , क्षितिज में हलकी सी रोशनी ढूँढने की कोशिश की लेकिन
अँधेरा था , हल्का सा अँधेरा , इतना हल्का की लगा सुबह बस रास्ते में ही
कहीं है , आँख खुलते ही उठना जरुरी लगता है लेकिन होता तो नहीं जरुरी,
उठते ही तो स्मृतियाँ परजौट माँगने लगती हैं , ऊसर मन चुका नहीं पाता
ट्रेन कहीं बीच में रुकी थी , किन्ही दो शहरों के बीच , किसी एक शहर के
ज्यादा करीब , पीछे छूट चुके
शहर की याद आते ही मन कोल्ड कॉफ़ी की महक से भर उठा और बेसाख्ता होठों से
फिसल पड़ा एक शब्द - कोल्ड कॉफ़ी , मन भी ऐसे ही समय चौपड़ बिछा बैठ जाता
है और कर लेता है सारी कौडियाँ अपनी तरफ , नाम की
याद की जगह किसी एक पल को सामने ला खड़ा करता है , और आ जाती है बहुत सारे
लम्हों के साथ मुस्कराहट और नमी एक साथ , सहयात्री ने कहा इतनी सुबह और
ठण्ड में कोल्ड कॉफ़ी ? क्या सहेजा हुआ नाम भी बेध्यानी में ऐसे ही निकलता
है , मुस्कुराते हुए एक चाय वाला ढूंढ निकाला , उसने कांच के गिलास में
चाय डाल मेरी तरफ बढाई , इनकार में सर हिलाते हुए मैंने कुल्हड़ में चाय
मांगी , हैरानी से मेरी तरफ देखते हुए उसने कंधे उचकाये और कुल्हड़ में
चाय दे दी , कन्धों पे हमेशा ही पुरानापन पसरा रहता है , हथेलियों
से कुल्हड़ थाम कोल्ड कॉफ़ी की गर्माहट के साथ मैंने अदरक वाली चाय की एक
घूँट भरी और पीछे रह गए शहर को पीते हुए आगे आने वाले अपने शहर की भीड़
में मन को खो दिया