एक थी मैं
जो
बेख़ौफ़ मुस्कुराती
और
एक थी मैं
जो
खोज में खुशियों की
भीड़ में खो जाती
एक थी मैं
जो
दीवारों से बेखबर
हर घर में जाती
और
एक थी मैं
जो
अपने घर के वजूद के सपने
को
तरस जाती।
जो
बेख़ौफ़ मुस्कुराती
और
एक थी मैं
जो
खोज में खुशियों की
भीड़ में खो जाती
एक थी मैं
जो
दीवारों से बेखबर
हर घर में जाती
और
एक थी मैं
जो
अपने घर के वजूद के सपने
को
तरस जाती।
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