खतों से , तस्वीरों से निकलती एक पुरानी हंसी कितना हल्का कर देती है हमें , और वहीं जमीन पर पाँव फैलाए सामान के ढेर के
बीच कहकहों को तलाशने लग जाते हैं , सर्दी ,गर्मी ,बरसात हर मौसम इनके बिना ना होने जैसा लगता है , चाय का प्याला
हथेलियों में लो तो जब तक वो यादों से लिपटा न हो तो उसकी गरमाई का अहसास हथेलियों से होकर सीने में उतरता ही नहीं।
कई बार छत पर चाय का प्याला हाथ में लेते ही लगता
है किसी ने पीछे से आ कर काँधों पे शाल डाल दी ,हम हँस कर पीछे मुड़ पड़ते हैं और अपनी ही साँसों की गरमाई से आँखों में
धुआँ सा छा जाता है ,सामने की कुर्सी कभी खाली लगी ही नही, वो मुस्कुराहट ,वो गुनगुनाहट रूह में अभी तक महफूज़ है.
बीच कहकहों को तलाशने लग जाते हैं , सर्दी ,गर्मी ,बरसात हर मौसम इनके बिना ना होने जैसा लगता है , चाय का प्याला
हथेलियों में लो तो जब तक वो यादों से लिपटा न हो तो उसकी गरमाई का अहसास हथेलियों से होकर सीने में उतरता ही नहीं।
कई बार छत पर चाय का प्याला हाथ में लेते ही लगता
है किसी ने पीछे से आ कर काँधों पे शाल डाल दी ,हम हँस कर पीछे मुड़ पड़ते हैं और अपनी ही साँसों की गरमाई से आँखों में
धुआँ सा छा जाता है ,सामने की कुर्सी कभी खाली लगी ही नही, वो मुस्कुराहट ,वो गुनगुनाहट रूह में अभी तक महफूज़ है.
No comments:
Post a Comment