आज
सोचा, आज तो जरुर कुछ लिख कर ही दम लेंगे, बड़ी तैयारी के साथ, सबको कमरे से
बाहर निकाल, कलम-कागज़ ले कर बैठे, लिखना शुरू ही किया था की ये क्या सारे
शब्द तो कबूतर बन फुर्र से उड़ गए, हम पीछे भागे भी , लेकिन ये कोई वो
मामूली से कबूतर थोड़े ही न थे ये तो सुर्ख सफ़ेद थे जो उड़ जाए तो लाख टटोलो
मज़ाल है की आसमान में दिख जाये .
दुपट्टे को उँगलियों पे लपेटा, सर पे रखा, आईने के सामने उल-जलूल शक्लें भी बनाई , कमरे की हर चीज़ को गौर से देखा , कमबख्त कंही कोई ख्याल छुपा हो, सोचा चाय ही पी ली जाए, उंहु , अब ख्याल हमारे सिरफिरे दोस्त तो हैं नहीं चाय की महक से ताबड़तोड़ कमरे में घुसते चले आयेंगे।
दुपट्टे को उँगलियों पे लपेटा, सर पे रखा, आईने के सामने उल-जलूल शक्लें भी बनाई , कमरे की हर चीज़ को गौर से देखा , कमबख्त कंही कोई ख्याल छुपा हो, सोचा चाय ही पी ली जाए, उंहु , अब ख्याल हमारे सिरफिरे दोस्त तो हैं नहीं चाय की महक से ताबड़तोड़ कमरे में घुसते चले आयेंगे।
सोच ही रहे थे की लिखने के लिए ख्यालों को कहाँ टटोले कि तभी ………
ये लो बारिश को भी अभी ही आना था ,अब ख्याल आयेंगे भी तो भीगे
हुए , हद्द है , कोई भी तो नहीं चाहता की हम अपने आप को पन्नो पे उतारे ,
सोचा किवाड़ खोल देते हैं (हम सोचते बहुत हैं ना ) , ठंडी हवा , बूंदे, उफ़ , माहौल रूमानी हो जाए तो
कुछ लिख ही डाले , छज्जे पे पहुँचते ही बूंदों ने कुछ सराबोर से लम्हे ,
सड़कों पे दौड़ते कुछ पल , अनसुनी-अनकही लाखों बातें ज़हन में ऐसी ताज़ा की, की
हम लाख मन को तागो में बाँधते रहे , उसे डपटते रहे लेकिन वो तो उनके पीछे
दौड़ पड़ा , कभी सुनी है उसने हमारी जो अब सुनता , हम लट्ठ ले के पीछे भागे
भी लेकिन हमारा मन तो न जाने किस खोह, किस कन्दरा में छुप कर बैठ गया है ,
हम भी इस इंतज़ार में हैं की कभी तो वापस आएगा।।
Himalaya :-)
ReplyDeleteLovely !
ReplyDelete