एक लफ्ज़ से परिचय हमेशा आधा -अधुरा ही रहा,
और अब तो कोई कैफियत ही नहीं,
अक्सर बगल में आ बैठता है,
कभी हैरानी हुआ करती थी ,
अब वो
अपनी पहचान देने में
और मैं खुद में
मशगूल रहती हूँ !!!!!!!!!!
और अब तो कोई कैफियत ही नहीं,
अक्सर बगल में आ बैठता है,
कभी हैरानी हुआ करती थी ,
अब वो
अपनी पहचान देने में
और मैं खुद में
मशगूल रहती हूँ !!!!!!!!!!
one more line about shabd would be good.
ReplyDeleteUs shabd ko samajhne wala hi samjhega !!
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