उम्मीदों के पंख पखेरू उड़ जाते हैं
नीले गहरे आसमान में ,
चुप सी पड़ जाती है उसकी पसलियों में ,
दुहरे कंधे लिए बुहार डालती है अपना आप ,
खींच निकाल तलवों से किरचें ,
फेंक आती है सड़क के दूसरी तरफ
बुरुंश की झाड़ियों के पीछे ,
सब कुछ वापस कर लिया है
अब की बार उसने ,
किसी भी मौसम के गुजरते रहने के लिए ,
खत्म हो ही जाती है
एक दिन
उम्र कैद भी !!!
नीले गहरे आसमान में ,
चुप सी पड़ जाती है उसकी पसलियों में ,
दुहरे कंधे लिए बुहार डालती है अपना आप ,
खींच निकाल तलवों से किरचें ,
फेंक आती है सड़क के दूसरी तरफ
बुरुंश की झाड़ियों के पीछे ,
सब कुछ वापस कर लिया है
अब की बार उसने ,
किसी भी मौसम के गुजरते रहने के लिए ,
खत्म हो ही जाती है
एक दिन
उम्र कैद भी !!!
उम्मीद का सिंचन
ReplyDeleteपौध को सींचने सा है
कई बार कुम्हलता भी है
फूलता और फलता भी है
फिर बीज को पसारकर
देह-मुक्त हो जाता है
सृजन-श्रृंखला जारी रहती है
इन छोटी-छोटी लड़ियों से