dosheezaa
Sunday, 29 December 2013
उजड़ते हुए भ्रम
छोड़ जाते हैं ,
अहेरी लम्हों से
आबाद,
एक संकरी सी गली ,
मुहाने पर खड़ी
नाप डालती हैं कोना - कोना ,
उम्रदराज़ मुस्कुराहटें ,
झुर्रियों सा इंतज़ार
कानो को हाथो की ओट दिए ,
कमर दुहरा लेता है ,
व्यग्र सा ,
सुनने को तेरी एक आवाज़।
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