# 12.12: द डे – इतिहास की धड़कनों पर चलता एक विवेकपूर्ण सिनेमाई लेखा
निर्देशक: किम सुंग-सू
मुख्य कलाकार: ह्वांग जुंग-मिन, जुंग वू-सुंग, ली सुंग-मिन, पार्क हे-जून, किम सुंग-क्युन
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## अंधकार में आशंका, और आशंका में क्रांति
फिल्म 12.12: द डे केवल एक सैन्य तख्तापलट की कथा नहीं है, बल्कि यह उस समय का दस्तावेज़ है जब एक राष्ट्र अपने भविष्य के सबसे नाजुक मोड़ पर खड़ा था। दिसंबर 1979 की वह रात, जब कोरिया की राजनीति ने करवट ली, निर्देशक किम सुंग-सू की दृष्टि में जीवंत हो उठती है — जैसे कोई पुराना, धूल सना दस्तावेज़ अचानक आपके सामने खुल जाए।
राष्ट्रपति पार्क चुंग-ही की हत्या के बाद राजनीतिक अस्थिरता ने कोरिया को झकझोर दिया। इस शून्य में, सत्ता को हथियाने और बचाने की दौड़ शुरू होती है। यह दौड़ सिर्फ बंदूकधारियों की नहीं, आत्मा और विवेक की भी है।
## पात्र नहीं, प्रतीक बनते हैं किरदार
ह्वांग जुंग-मिन द्वारा निभाया गया मेजर जनरल चुन डू-ग्वांग सत्ता का भूखा व्यक्ति नहीं, बल्कि इतिहास को अपने अनुसार मोड़ने का स्वप्न देखने वाला है। उसकी आंखों में सत्ता है, पर आत्मा में अनिश्चितता की लपटें। वहीं जुंग वू-सुंग का ली ताए-शिन मानो युद्ध के बीच एक मोमबत्ती है — टिमटिमाती हुई , पर अपनी रोशनी न खोती हुई ।
इन दोनों के बीच टकराव केवल विचारों का नहीं, बल्कि भविष्य की शक्ल का है। सहायक कलाकारों की उपस्थिति भी केवल भूमिका नहीं निभाती — वे समय की नब्ज़ बन जाते हैं।
## निर्देशन और दृश्य-नियोजन में सूक्ष्मता
किम सुंग-सू कैमरे से चिल्लाते नहीं, फुसफुसाते हैं। उनकी शैली तेज नहीं, धीरे-धीरे आत्मा में उतरने वाली है। दृश्य इतने सघन हैं कि हर कमरे की दीवार, हर रेडियो की खामोशी, एक अदृश्य संवाद बन जाती है।
एक ही रात में घटने वाली कहानी को वे इतनी परतों में कहते हैं कि दर्शक कहीं खोता नहीं , बल्कि भीतर की ओर उतरता चला जाता है।
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## ध्वनि जो मौन को मुखर बनाती है
फिल्म में संगीत कोई पार्श्वभूमि नहीं, आत्मा का स्पंदन बन जाता है। न गूंज है, न शोर — केवल वह मौन है जो युद्ध से पहले की नब्ज़ जैसा प्रतीत होता है। पैरों की आहट, टेलीफोन की घंटी, और रेडियो की दरारें — सब मिलकर एक अदृश्य भय रचती हैं।
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## समय और सीमाओं से परे एक दृष्टिकोण
यह फिल्म कोरियन राजनीति की बात करती है, लेकिन विषय कहीं अधिक व्यापक हैं। यह बताती है कि सत्ता का संघर्ष केवल नेताओं के बीच नहीं, बल्कि उस चेतना के बीच है जिसे हम लोकतंत्र कहते हैं। जब सैनिक सोचने लगें कि वे शासन के योग्य हैं, तब संकट सिर उठाता है — यही चेतावनी यह फिल्म देती है।
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## निष्कर्ष: एक विवेकपूर्ण युद्धगाथा
12.12: द डे को केवल थ्रिलर कहना उसके साथ अन्याय होगा। यह फिल्म एक दर्पण है — जो सत्ता की भूख, नैतिक दुविधा और इतिहास के अनकहे क्षणों को प्रतिबिंबित करती है।
इसमें विस्फोट नहीं हैं, पर विचार हैं। इसमें नायक-खलनायक की स्पष्ट रेखाएं नहीं, बल्कि धुंधली सीमाएं हैं — जहां निर्णय लेना ही युद्ध बन जाता है।
रेटिंग: 9/10
यदि आपने Argo या Munich जैसी फिल्में पसंद की हों — तो यह आपकी सूची में अवश्य होनी चाहिए।
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क्या आपको यह फिल्म देखनी चाहिए?
यदि आप केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि सिनेमा से संवाद करना चाहते हैं — तो हाँ, यह फिल्म आपके लिए है।