Thursday 3 April 2014

सदियों से बीते हुए समय को उलट कर
बेआवाज़ रोने के बीच
काश के साथ
याद में दाखिल है एक चेहरा
लेकिन
उसने चुना है अपने लिए
सिर्फ
मुस्कुराहटें देखना

हा ! इस प्रेम की नियति यही है

1 comment:

  1. बहुत पसन्द आया
    हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद

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