Wednesday 10 October 2018








गोदी  में रखे हुए उसके हाथ देख रहा था,

मैं तुम्हे कुहनियों से पकड़ना चाहता हूँ कलाई से नही


क्यूँ,

उसने बालों को कान के पीछे करते हुए बिना नज़रें मिलाये पूछा


थोड़ी ज्यादा करीब रहोगी और हाथ छुड़ा भी नही पाओगी, उसकी तरफ झुकते हुए उसने कहा


आँखों से झाँकती शैतानी ने उसकी दबी दबी सी मुस्कुराहट को थाम लिया

उसका मन किया उठ कर उसके गले लग जाये कस के बहुत बहुत कस के

अपनी ख्वाहिश पूरी करने को वो उठ ही रही थी कि फोन की रिंग बज उठी


आँखें बंद किये वो मुस्कुरा रही थी बेतरह, फोन की रिंग सुन उसने मुस्कुराते हुए फोन की तरफ देखा, वो जानती थी कौन उसे इस वक़्त टहोक रहा है, घड़ी की तरफ देखने की जरूरत भी नही थी, उसने मुस्कुराते हुए फोन उठा लिया

क्या कर रही हो

हर सुबह ये आवाज़ उसकी साँस थाम लेती, उसे उस  एक दिन को बिताने की वजह मिल जाती, उसकी आवाज़ में खनक लौट लौट आती

तुम्हारे साथ के ख्वाब बुन रही थी,

होठों पे अपने हिस्से की मुस्कुराहट और आँखों मे उसके हिस्से की बदमाशियाँ रख उसने कहा-

चुड़ैल

और वो खिलखिला के हँस उठी

वो दिल थामे  आँखें बंद किये उसकी हँसी सुनता रहता

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