Sunday 13 October 2013



हमारे भाई बहनों और भौजाइयों ने तो बहुत चाहा और कोशिश भी की कि हम लम्बाई में अमिताभ से भी तिगुने नहीं तो कम से कम दुगुने जरुर हो जाएँ , पता नहीं किसकी किस्मत ने साथ नहीं दिया वैसे आज तक उनकी कोशिशे बरकरार हैं ।

बच्चों की छुट्टियां शुरू होने से पहले ही दूर-दराज़ के भाई बहनों का प्रोग्राम बन गया एक जगह इकट्ठे होने का , हमने भी हामी भर दी , तब पता थोड़े ही ना था की ओखली में सर डाल रहे हैं। ट्रेन की धक्कम- धक्की , खिच-पिच सिर्फ अपने प्यारे भाई बहनों की सूरत को याद कर कर झेल गए लेकिन क्या पता था की सर मुंड़ाते ही ओले पडेंगे। ठण्ड अभी शुरू हुई नहीं और गर्मी पूरी ढिठाई से अपनी जगह कायम है , हमने घर के बाहर ही सामान पटकते हुए आवाज़ लगाईं की कोई लेते आना भई ये सामान ,लस्त -पस्त से हमने कमरे में कदम रखा , कमरे में कदम रखते ही छोटे भाई साब चिल्लाये ---अरे!संभालो, संभालो, पकड़ो , गिरा जा रहा है हम डर गए , सोचा सारा सामान तो बाहर पटक आये थे ऐसा क्या रह गया ,भाई साब के बोलते ही कमरे में ख़ामोशी छा गई , ऐसी ख़ामोशी की पलक भी झपके तो आवाज़ आये , हमने सहम कर नीचे देखा , कहाँ ? क्या गिरा ? हमें कुछ दिखा ही नहीं , नीचे तो साफ़ चमकता हुआ फर्श दिख रहा था ,एक तिनका भी तो नहीं था , छोटे भाई साब बोले अरे तुम्हारा पेट घुटने से नीचे गिरा जा रहा है , संभालो उसे , खिसियाये हुए हम कुछ कहते उसके पहले ही इकट्ठे हुए भाई -भौजाई , बहने सबने ऐसा गगन-चुम्बी ठहाका लगाया की हमारी खिसियाहट चुपचाप खिडकी की झिर्री में से नौ - दो -ग्यारह हो गई , ठहाके ठहर पाते , सांस ले बैठ पाते उससे पहले बड़े भाई साब बोले --अच्छा अब पूरी तो अंदर आ जाओ ! हम निरे गधे के गधे ही रहे , अभी खिचाई हो के चुकी थी पल भर में भूल गए और मासूमियत से पूछ बैठे - मतलब ? भाई साब ने अपनी मुस्कराहट मूछों में छुपाते हुए कहा ---अरे आगे का हिस्सा तो कमरे में आ गया , थोडा सा आगे बढ़ो , पीछे के हिस्से को भी आने दो कमरे में , वैसे ही उसे एक हफ्ता लगता है पूरी तरह से कमरे में आने में .
हद्द होती है हर बात की , अभी आ के टिके भी नहीं और ये सारे शुरू भी हो गए , ये सारे अजीब से प्राणी खींच- खींच कर हमारी लम्बाई बढ़ाने में लगे हुए हैं , सारे भाई - भौजाइयाँ पेट पकड़ कर जमीन पे लोट लगा रहे थे , हम मुँह बिसूरे और सारे बच्चे मुँह बाए इस नज़ारे को देख रहे थे , जो धमाचौकड़ी इन बच्चो के हिस्से आनी चाहिए वो तो ये सारे मिल कर किये जा रहे हैं , जहाँ मिले ये चार सर , वहीँ शरारतों को लग जाते हैं पर , पता नहीं किस घड़ी में हमें ये ख्याल आया था की सब इक्कठे हो रहे हैं तो हम भी जुट जाएँ ,विनाश काले विपरीत बुद्धि , अब पीटो सर अपना , छुट्टियाँ तो नज़र आ गई कैसी बीतने वाली हैं .



(बुनी जा रही कहानी का एक अंश )

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