Thursday 14 November 2013

एक थी मैं
जो
बेख़ौफ़ मुस्कुराती
और
एक थी मैं
जो
खोज में खुशियों की
भीड़ में खो जाती
एक थी मैं
जो
दीवारों से बेखबर
हर घर में जाती
और
एक थी मैं
जो
अपने घर के वजूद के सपने
को
तरस जाती।

No comments:

Post a Comment