Thursday 16 October 2014

ढलती सड़क से उतरते लड़की ने रक्खी थी
एक कहानी उसकी हथेलियों में,

लड़के ने "ओह" कहते हुए
कहानी के बंद खोल
उछाल दिए सारे अक्षर,

कांधों पर बैठते, गर्दन से टकराते, बाहों पर से फिसलते-बिखरते लफ़्ज़ों में से
लड़की ने
उसके नाम का एक अक्षर उठा
बंद मुट्ठी पीठ पीछे कर ली.

लड़के ने उसके सब्ज़ होंठ छुए
इतना सा झुका की रख सके
उसके सीने में एक मुस्कराहट,

आँख भर ली जाए
बस
इतनी देर देख लड़की ने उसे
निगाहों से चूम लिया,

लड़के ने उसकी आँखों में जाले रखे
और
उसके कानो में अपने शब्द्फूल पहनाये
रौशनी बनने से पहले,

उसी ढलती सड़क पर
उसी तरह धूप में
अब भी वो लड़की
उन शब्द्फूलों  की उन्नाबी झनकार  में गुम,
कुछ अधूरी बातों में
हमेशा याद रह जाने वाली
एक मुकम्मल कहानी की तरह
खड़ी है!!  

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