Friday 3 January 2014

 तुंगनाथ से आती पवित्र  ध्वनियाँ शोर बन जाए
 उससे पहले
 स्नेहिल एक स्वर सुन सकू
 बस इतना ही चाहा  था ,
ज्यादा था ?
नीरव शहर के बीच
 आपाधापी सहते तिराहे पर
चुपचाप  बैठे बैठे सांस लेना
 कितना आसान लगता है न
काश
आसान होता ,
ये सारी नीरवता
एक पदचाप से भाप बना उड़ा सकू
बस इतना ही चाहा था
ज्यादा था?
 चेहरे  पे उगे सारे झूठ
सर पे आग लिए पंछी के हवाले कर
एक सच सुनने की आस
आँखों में जगा सकू
बस इतना ही चाहा था ,
ज्यादा था ?
जो समा गया अतीत के गर्भ में ,
जिसे भोगा  नहीं वर्तमान ने ,
कभी देख नहीं पायेगा
जिसे
कोई भविष्य
वो चाह लिया मैंने
वाकई
बहुत ज्यादा चाह लिया था मैंने .

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