मोहब्बत में डूबी
आँखों को रंग देने
किसी अजाने काल में
फूट था एक ज्वालामुखी,
मारू ने रक्खी थी कुछ नसीहतें
हथेली पर,
हीर ने कच्ची मिटटी से बना
बाँधा था ताबीज़ तुम्हारे गले में,
आज इस वक़्त
उस ताबीज़ को चूमते हुए
चाहना है
पीठ मिला खड़े
इकलौते और अंतिम सच को एक करने की।
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