जब
कह उठती हूँ
कि
कोई आहट हो की पलकें झपकें और
सूख जाएँ आँखें
तो
तुम अपनी रेखाओं में लिख लेते हो
मेरा इंतज़ार,
जब लिखती हूँ
स्वयं की खोज में पहुंची हूँ तुम तक
तो
बाँहों में भर लेते हो
मेरे इस तय किये हुए फासले को,
तानो उलाहनों की बंदिश में पगी
बेसब्री और इंतज़ार भरी
पुकार सुन
बिना मुड़े
समझ लेते हो मेरा प्रेम
जानती हूँ मैं।
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