Thursday 12 September 2013

उतरती है मेरे तुम्हारे बीच
    एक पगडण्डी अक्सर
सीधी सपाट
निर्जला
कंठ में काँटे  सहेजे
पसरती हैं चुप्पियाँ
इस सिरे से उस सिरे तक
पगडण्डीयाँ  हमेशा
रस्ता  नहीं
हुआ करती !!!!

3 comments:

  1. एक जोड़ी पैरों ने कोशिश करके समय के चहरे पे एक लकीर खीच दी। . कोई साथ चला आया तो पगडण्डी नहीं तो सुबह की ओस के जमने की जगह कुछ देर के लिए के लिए कम हो गयी ,
    समय के चेहरे पे ये लकीर अभी अपने थम जाने का इन्तेजार करते हुए चितिज़ को निहारती है।
    बस अभी, थोड़ी देर और अभी।

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    1. koi itni achchi tarah bhi samajh sakta hai , sukriya aapka

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    2. samajh meri nahi hai, god gifted hai, so shukriya unka.

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