Friday 13 December 2013

जज़्ब कर लेती हैं
बारिश की बूँदें
सीढ़ियों पर बैठी लड़की की परछाई को,
लिख रहा हो जैसे कोई
चिट्ठी
किसी की आमद के इंतज़ार मे ,

सड़क पर पड़ा
निम्बोली सा धूप का एक टुकड़ा ,
 इस शहर के उदास मौसम में ,
बाट जोहता है ,
हमेशा से लिखी जा रही चिट्ठियों के लिए
नाम -पते का ,
सरहुल की रात भी
नहीं लौटा पाती
हवा में घुलते शब्द
जो लिखे थे
जादुई स्याही से
दरकते मौसमो ने।











(झारखण्ड-छत्तीसगढ़ के सीमान्त पर, अरण्य में अब भी आलिंगनबद्ध युगल की शैलाकृति है। उपर्युक्त दन्तकथा के आधार पर, लोकमान्यता है कि सूर्य और पृथ्वी के मिलन के महान आदिवासी वसन्तोत्सव पर्व ‘सरहुल’ की रात में इस कृष्णवर्ण शैलाकृति पर चिंया (इमली के बीज ) घिसकर पीने से मनचाहा जीवन-साथी मिलता है)







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