dosheezaa
Wednesday 31 December 2014
कलाई में बंधी गिरह जल गई थी,
राख गले पे रख दहकते शोले निगल लिए थे,
अपनी बाहों से उतार
बीती रात रख छोड़ी है उँगलियों में लिपटी नफरत तुम्हारे सिरहाने,
मैं भस्म हो चुकी
तुम इसे ओढ़ पाये तो जी उठोगे.
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