Monday 30 December 2013

दो विपरीत ध्रुवों के बीच ,
संतुलन नाप ,
रस्सी पर झूलती नटनी ,
गिरना जाने बिना संभलती है ,
पार कर जाती है फासले
अंगूठे और ऊँगली के
बीच बैठी
खाली जगह के सहारे

बांच रक्खी हैं भाग्यरेखायें
प्रेम ने ।

1 comment:

  1. नाज़ुक... सुन्दर...

    प्रेम अद्भुत नट-पग है...
    शून्य में पांव रख
    पांव में तूफान रख
    आँखों में गीत रख
    ताकती है
    रंग नापती है

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