Thursday 22 August 2013

चारदीवारियों की महफूज़ हवा ,
उधार सी है
नर्म बिस्तर की नींद ,
उधार ही तो है
हर वो निवाला बामुश्किल
उतरता है जो हलक से
उधार का ही तो है
सुनती हूँ चुप-चाप ,
घुटने पे ठुड्डी रखे,
--------- ब्याहता हो !

खुदाया ,सौगंध तुझे
उन नज्मों की
निकली हैं जो मेरे ज़ख्मो से,
तेरे घर आऊं उससे पहले ,
सारा उधार उतार देना !!!!!!      

2 comments:

  1. "सरसों का एक दाना लेते आओ
    जहाँ कभी कोई अपशकुन न हुआ हो "

    ढूँढती फिर रही हूँ वो सरसों का दाना
    काला नहीं तो पीला ही सही
    पूरा नहीं तो अधूरा ही सही
    वो सरसों का दाना मिलता ही नहीं
    सिद्धार्थ क्या पहेली दे गए ?
    नहीं पहेली न होगी , सच्च ही होगा
    एक दिन और वो सरसों का दाना ढूँढ लूं
    क्या पता शायद अमरत्व मिल ही जाये। ।

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  2. सारा उधार उतार देना .............वाह जी , वह बहुत अच्छे

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