Friday 23 August 2013

ना आभास ,ना ध्वनि, ना आकार,
ना मन का मेला है,
ना रंग ना सपने ,
ना कुछ चाहा है और
ना ही अनचाहा ,
ना ठंडी नदी बची है ,
और ना ही कोई
गर्म पानी का सोता है
निराकार हो गई हूँ
लगता है जैसे
तुम्हे पा लिया है
मैंने!!!

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